Hindi Sahitya ka Kaal Vibhajan हिन्दी साहित्य का काल विभाजन अलग अलग विद्वानों ने अपने अपने मत दिए है। सबसे पहले डॉ. गियर्सन ने दिया लेकिन हिन्दी साहित्य के इतिहास मे इसको मान्यता नहीं दी गई। डॉ. रामचन्द्र शुक्ल ने दोहरे नामकरण के आधार पर हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा। डॉ. शुक्ल का इतिहास हिन्दी साहित्य मे सर्वाधिक मान्य माना जाता है।
डॉ. जॉर्ज गियर्सन काल विभाजन
हिंदी साहित्य का काल विभाजन करने का सबसे पहला प्रयास जॉर्ज गियर्सन ने किया। इन्होंने अपनी पुस्तक ‘द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑफ हिंदुस्तान ‘ में ग्यारह (11) अध्यायों में हिंदी साहित्य का काल विभाजन किया है। साथ ही इन्होंने कवियों और लेखकों की प्रवृत्तियों को भी स्पष्ट करने का भरसक प्रयास किया है।
डॉ. जॉर्ज गियर्सन ने हिन्दी साहित्य का काल विभाजन साहित्यिक प्रवृत्ति के आधार पर किया है, लेकिन काल खण्डों के नामकरण हेतु उन्होंने अनेक आधार ग्रंथों का सहारा लिया है। ग्रियर्सन ने सबसे पहले हिन्दी साहित्य के आरम्भिक काल को ‘चारण काल’ कहा है, जिसके अन्तर्गत उन्होंने नौ (9) कवियों का उल्लेख किया हैं, जिनके नाम हैं. पुष्य कवि, खुमाण सिंह, केदार, जगनिक, कुमार पाल, अनन्यदास, चन्द्र, जोधराज और शारङ्गधर।

मिश्र बंधुओ का काल विभाजन
मिश्र बंधुओ ने अपना ग्रंथ “मिश्र बंधु विनोद” लिखा। मिश्र बंधुओं ने अपने ग्रंथ मे सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य को पाँच खण्डों में विभाजित किया है

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का काल विभाजन

डॉ. रामकुमार वर्मा का काल विभाजन
डॉ. रामकुमार वर्मा ने ‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास ‘ (1938) ग्रंथ की रचना की है । संपूर्ण ग्रंथ को 7 प्रकरणों में विभक्त किया है। इन्होंने सामान्यतः आचार्य रामचंद्र शुक्ल के ही वर्गीकरण का अनुसरण किया है। इन्होंने केवल ‘वीरगाथा काल’ के स्थान पर ‘चारण- काल’ एवं ‘संधिकाल’ नाम दिया। अंतिम तीन काल विभाजन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के विभाजन के समान ही हैं।

डॉ. नगेन्द्र द्वारा संपादित हिन्दी साहित्य का इतिहास के अनुसार काल विभाजन
