• हार्मोन (Hormones)  शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1906 ई. में स्टर्लिंग ने किया था।
  • हार्मोन एक विशिष्ट यौगिक होता है जो अन्तःस्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित होता है।
  • यह मुख्यतः अमीनो अम्ल, कैटेकोलेमीन्स स्टीरायड्स एवं प्रोटीन होते हैं।
  • अन्तःस्रावी तंत्र के जनक – थॉमस एडीसन
  • बहिःस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित शरीर के किसी निश्चित भाग में एक नलिका या वाहिनी द्वारा पहुंचाया जाता है।
अन्तःस्रावी ग्रंथि –
  • वे ग्रन्थियां जो अपने स्राव को रक्त द्वारा लक्ष्य तक पहुंचाती है इन्हें नलिकाविहीन ग्रंथियां भी कहा जाता है।
पीयूष या पिट्यूटरी ग्रंथि –
  • Pituitary Gland कपाल की स्फेनॉयड हड्डी में, सेलाटर्सिका नामक गड्ढ़े में उपस्थित रहती है। यह लघु एवं मस्तिष्क के अधरतल के मध्य स्थित रहती है एवं उससे एक इन्फन्डीबुलम नामक छोटे वृन्त से जुड़ी रहती है।
  • भार लगभग .6 ग्राम लेकिन स्त्रियों मं गर्भावस्था के दौरान कुछ बड़ी हो जाती है।
  • पियूष ग्रंथि को ‘विसेल्सियस’ ने इसके विभिन्न कार्यों के कारण ‘मास्टर ग्लैंड Master Gland‘ कहा।
  •  क्योंकि यह अन्य अंत:स्रावाी ग्रंथियों के स्रावण को नियंत्रित करता है। व्यक्ति का स्वभाव, स्वास्थ्य, वृद्धि एवं लैंगिक विकास को भी प्रेरित करती है।
मुख्यतः तीन भाग होते है।
अग्रपिण्ड –
  • यह गुलाबी रंग का कुल ग्रंथि का लगभग 75 प्रतिशत भाग।
  • यह मुख्यतः बेसोफिल, एसिडोफिल्स तथा क्रोमोफिल्स की कोशिकाओं से मिलकरर बना होता है। इसके द्वारा स्रावित सभी हार्मोन
  • मुख्यतः प्रोटीन होते हैं। इसके द्वारा स्रावित हार्मोन शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रण करने के साथ-साथ शरीर की अन्य अंतःस्रावी ग्रंथि का नियंत्रण भी करते हैं।
मुख्य हार्मोन निम्नलिखित है –
वृद्धि हार्मोन या सोमैटोटॉपिक – STH
  • Somatotropic Hormone शरीर की वृद्धि में सहायक है।
  • यह शरीर की कोशिका विभाजन को बढ़ाना, प्रोटीन-संश्लेषण ऊतकों को क्षय होने से रोकना, अस्थियों के विकास में सहायता पहुंचाना एवं शरीर में वसा विघटन को प्रभावित करके ऊर्जा उत्पादन में सहायता पहुंचाना
STH के अल्पस्रावण से होने वाले रोग
बौनापन या मिजेट्स
  • बाल्यावस्था में इसकी कमी से यह रोग हो जाता है। इसमें व्यक्ति मानसिक रूप से पूर्ण विकसित होते हैं किन्तु लम्बाई में वृद्धि नहीं हो पाती है। ये अधिकतर नपुंसक या बांझ होते हैं। इस प्रकार के बौनेपन को ऐटीलिओसिस Ateleosis कहते हैं।
साइमण्ड रोग
  • इसमें शरीर शीघ्र क्षय होने लगता है। समय से पहले बुढ़ापा आता है।
STH के अतिस्रावण से होने वाले रोग
महाकायता
  • कोशिकाओं में अमीनो अम्ल अधिक मात्रा में पहुंचते है, जिससे हड्डियों के सिरों पर अधि-प्रवर्धी उपास्थियों काफी समय तक अस्थियों में नहीं बदलती जिससे अस्थियां बहुत लम्बी हो जाती है।
एक्रोमिगेली
  • जबड़े की हड्डियां लम्बी हो जाती है।
  • थाइरोट्रापिक या थॉइराइड प्रेरक हार्मोन
  • थॉइरॉक्सिन हार्मोन के स्रवण को प्रभावित करता है।

ऐड्रीनोकोर्टिको ट्रॉपिक हार्मोन –

  • एड्रीनल ग्रंथि के कॉर्टेक्स को प्रभावित कर उससे निकलने वाले हार्मोन्स को भी प्रेरित करता है।
गोनेडोट्रॉपिक हार्मोन
  • जनन ग्रंथियों की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है यह दो प्रकार का होता है –
फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हार्मोन:-
  • पुरुषों में यह शुक्रकीट निर्माण को उद्दीप्त करता है।
  • स्त्रियों में यह हार्मोन अण्डाशय से अण्डोत्सर्ग को प्रेरित करता है। जिसे कॉर्पस ल्यूटियम को प्रेरित करता है।
ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन या अंतराली कोशिका प्रेरक हार्मोन LH या ICSH  
  • पुरुषों में यह अन्तराली कोशिकाओं को प्रभावित कर नर हार्मोन को प्रेरित करता है जबकि महिलाओं में यह कॉर्पस ल्यूटियम की कोशिकाओं की वृद्धि करता है।
लैक्टोजेनिक हार्मोन या ल्यूटिओट्रॉपिक/ प्रोलैक्टिन हार्मोन
  • यह हार्मोन कार्पस ल्यूटियम को बनाये रखने एवं प्रोजेस्टेरॉन के स्राव को चालू रखने में सहायक होता है। यह स्तन वृद्धि एवं दुग्ध के स्राव को कायम रखता है।
मध्यपिण्ड द्वारा स्रावित हार्मोन
  • यह स्तनधारियों में अल्पविकसित होता है। यह ग्रेनलर एपीथिलियल कोशिकाओं का बना होता है।
मिलैनोसाइट प्रेरक हार्मोन MSH
  • निम्न जन्तुओं एवं पक्षियों में यह हार्मोन मिलेनिन रंग के कणों को फैलाकर त्वचा के रंग को प्रभावित करता है। इससे त्वचा रंगीन होती है। मनुष्य में यह हार्मोन त्वचा में चकते तथा तिल पड़ने को प्रेरित करता है।
  • पश्चपिण्ड द्वारा स्रावित हार्मोन
  • यह 1/4 भाग होता है।
पश्च पिण्ड द्वारा स्रावित हार्मोन
  • पश्च पिण्ड ठोस एवं पूरी ग्रंथि का 1/4 भाग बनाता है। हार्मोन का निर्माण मस्तिष्क के हाइपोथैलमस भाग की तंत्रिका स्रावी कोशिकाओं द्वारा होता है, जो मस्तिष्क के काफी गहरे भाग में स्थि​त होती है।

इससे दो प्रमुख हार्मोन्स स्रावित होते हैं—

वैसोप्रिन
  • इसे एन्टी डाईयूरेटिक हार्मोन — एडीएच या मूत्ररोधी हार्मोन भी कहते हैं। यह मुख्यत: पॉलीपेप्टाइड होता है।
कार्य—
  • यह वृक्क की मूत्रवाहिनियों को जल का पुनरावशोषण करने को प्रेरित करता है। साथ ही यह रुधिर वाहिनियों को सिकोड़ कर रक्तदाब बढ़ाता है।
  • यह शरीर के जल संतुलन में सहायक होता है, इसलिए इसको एंटीडाइयूरेटिक कहा जाता है।
कमी से होने वाले रोग
  • शरीर में इसकी कमी से मूत्र पतला हो जाता है तथा इसकी मात्रा बढ़ जाती है, जिसे मूत्रलता कहते हैं।
    वृक्क की नलिकाओं से जल का पुनरावशोषण कम होने से उत्पन्न रोग को डायबिटीज इन्सिपिडस या उदकमेह कहते हैं।
अधिक स्रावण से उत्पन्न रोग
  • अत्यधिक स्रावण से मूत्र गाढ़ा हो जाता है क्योंकि जल का अ​त्यधिक मात्रा में पुनरावशोषण होने लगता है। इसके साथ ही रक्त भी पतला हो जाता है।
ऑक्सीटोसिन या पाइटोसीन
  • यह पॉलीपेप्टाइड होता है तथा गर्भाशय की अरेखितपेशियों में सिकुड़न पैदा करता है जिससे प्रसवपीड़ा उत्पन्न होती है तथा बच्चे के जन्म में सहायता पहुंचाता है।
  • यह स्तन से दूधस्राव में भी सहायक है।
  • संभोगावस्था में यह हार्मोन गर्भाशय की दीवार में संकुचन उत्पन्न करता है जिससे शुक्राणु अण्डवाहिनियों में आसानी से पहुंच जाते हैं।

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